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  • मूलभूत मसले और देश का पर्वमूलभूत मसले और देश का पर्व

    मूलभूत मसले और देश का पर्व

      लोकतंत्र का पर्व शुरू हो चला है और अब तो मतदान भी शुरू हो चुके हैं। देशभर में तैयारियां जोरों शोरों से चल रही हैं। वैसे तो देश में होने वाले अन्य पर्व जैसे कि गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, दिवाली, ईद, होली, रक्षाबंधन आदि जो पर्व मनाए जाते हैं। उनकी भी तैयारियां देशभर में कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं और ये पर्व देशभर की जनता के लिए हर्षोल्लास के दिन लाते हैं। इन पर्वों में पूरे देश की जनता तैयारी में जुटती है लेकिन जो लोकतंत्र का पर्व होता है- चुनाव।  इसमें तो सिर्फ राजनीतिक पार्टियां ही तैयारी करती हैं। अन्य पर्वों में तो सभी खुशियां मनाते हैं। लेकिन जो लोकतंत्र का पर्व है- चुनाव यह किसी के लिए डर बन कर आता है तो किसी के लिए कुछ और अधिक हासिल करने का मौका लाता है। डर उनके लिए जो सत्ता में काबिज होते हैं। वह भले ही चुनावी रैलियों, अपने भाषणों और प्रेस कॉन्फ्रेंस या किसी बैठक के दौरान यह कह रहे हों कि हम फिर से सत्ता में बहुमत से आएंगे। लेकिन अंदर से उनके मन में सत्ता खोने का डर या फिर बहुमत खोने का डर जरूर बना रहता है। वहीं विपक्षी दलों के पास पिछली बार से कुछ अधिक सीटें पाने की उम्मीदें बनी रहती हैं। क्योंकि प्रकृति का भी नियम है कि जिनके पास होने को कुछ नहीं होता या खोने को बहुत कम होता है। उन्हें सब कुछ पाने की उम्मीद या कुछ ज्यादा पाने की उम्मीद अधिक होती है और पाने के मौके भी अधिक होते हैं।

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  • अनाज के दुश्मनअनाज के दुश्मन

    अनाज के दुश्मन

    महराजगंज ( रायबरेली, यूपी ): जब प्रत्येक महीने के अंतिम दिनों में बहुत से लोगों और परिवारों में छुट्टियों से लेकर पिकनिक तक की तैयारी और तरह-तरह की हलचलें शुरू होने लगती हैं तो वहीं कस्बे के कुछ परिवारों में माह के अंतिम दिनों में मुश्किल से चूल्हे आग जाती है। जब किसी के घर में चूल्हे में मुश्किल से आग पहुंचती है तो उसके घर में मौजूद बच्चों के पेट में लगी आग की लपटों को देख और सुन पाना शायद ही किसी के लिए सहज हो। कहानी नहीं ये हकीकत है कस्बे के उन परिवारों की जिनके पास राशन कार्ड तो हैं, वह गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत आते भी हैं, उन्हें राशन भी मिलता है। लेकिन समस्या यह है कि राशन पूरा नहीं मिलता है राशन पूरा क्यों नहीं मिलता है, क्या सरकार ऊपर से राशन कम भेजती है? - बिल्कुल नहीं! सरकार राशन पूरा भेजती है।

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  • कुछ और नए बोझकुछ और नए बोझ

    कुछ और नए बोझ

    अभी मर रहे हैं ताकि बुढ़ापे में ठीक से मर सकें -- - - ठीक ऐसा ही जीवन जीने के लिए मजबूर हैं देश के वे लोग जो बेरोजगार हैं या तो पूरी तरह से बेरोजगार है। हाल ही में आई रिपोर्ट --- इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ( ILO ) और इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट ( IHD ) की मिली जुली एक रिपोर्ट में कुछ इसी प्रकार का खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट में स्पष्ट है कि हर 100 बेरोजगारों में से 83 युवा पढ़े-लिखे नौजवान है। साल 2000 में युवा बेरोजगार 35.2 प्रतिशत थे, तो वही 2022 में यह बढ़कर 65.7% हो गए हैं। आज के समय में विकसित भारत के लक्ष्य को साधते हुए पिछली सरकारों से ज्यादा विकास करने का दावा करती सरकार के आंकड़ों को इस बढ़ती बेरोजगारी की यह रिपोर्ट सरकार के दावों को जुमला साबित करती है। इस रिपोर्ट को भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने मार्च के अंतिम सप्ताह में अपने हाथों से जारी की है। जिसमें स्पष्ट है कि पढ़े लिखे होने के बावजूद भी 62.2 प्रतिशत लड़के और 76.7 प्रतिशत लड़कियां बेरोजगार हैं। इसका एक कारण कोरोना महामारी का आना भी था।

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  • उत्तर प्रदेश और विकास परियोजनाएंउत्तर प्रदेश और विकास परियोजनाएं

    उत्तर प्रदेश और विकास परियोजनाएं

    मझिगवा ( रायबरेली, उ. प्र. ) उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में महराजगंज ब्लाक के मझिगवा ग्रामसभा के ईंट-भट्ठे वाले इस इलाके में ईंट से निकली धूल की पर्त पहले से ही हर चीज के ऊपर जमी रहती थी। लेकिन अब पक्की सड़कें भी धूल से सनी हुई हैं। अगर कोई भी व्यक्ति मेहमान की तरह इस गांव में प्रवेश करना चाहे तो मुश्किल होगा बशर्ते वह बंद वाहन / गाड़ी से न आया हो। मुश्किल इसलिए होगा क्योंकि सड़कों पर जमी 5 से 6 इंच तक धूल की परतें उसे एक मजदूर के रूप में तब्दील कर देंगी। सड़क के बगल में स्थित खेत के किसान ( उम्र 75, भूतपूर्व मेट ) रामसुमिरन सब्जी के साथ-साथ अन्य फसलों की भी खेती करते हैं। ये बताते हैं कि अब तो गर्मी भी शुरू हो गई है और धूल इतनी ज्यादा उड़ती है कि हमारी सब्जियां इससे खराब होने लगती हैं और अब सब्जियां तोड़कर बाजार ले जाने से पहले उनकी सफाई करने में बहुत मसक्कत करनी पड़ती है।

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  • सियासत के मैदान में भारत रत्न की मोहरेंसियासत के मैदान में भारत रत्न की मोहरें

    सियासत के मैदान में भारत रत्न की मोहरें

    एक तरफ जहां सत्ताधारी पार्टी बीजेपी लगभग पूरे उत्तर भारत में अपनी लहर बनाए हुए है, तो वहीं अगर कर्नाटक को छोड़ दें तो लगभग पूरे दक्षिण भारत में भाजपा कहीं भी नहीं है।

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  • शौक -ए- पत्रकार शौक -ए- पत्रकार

    शौक -ए- पत्रकार

    देश में शौकिए पत्रकारों की कमी नहीं है ।जिनका उद्देश्य रातों-रात फिल्मी सितारा हो जाना होता है। आज देश की मीडिया का स्तर एक ऊंची सीढ़ी के निचले पायदानों में आने का एक कारण उनका शौक भी है।

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