सियासत के मैदान में भारत रत्न की मोहरें

एक तरफ जहां सत्ताधारी पार्टी बीजेपी लगभग पूरे उत्तर भारत में अपनी लहर बनाए हुए है, तो वहीं अगर कर्नाटक को छोड़ दें तो लगभग पूरे दक्षिण भारत में भाजपा कहीं भी नहीं है।

कहा जा रहा है कि 2 महीने बाद आने वाले लोकसभा चुनाव के समीकरणों को सीधा करने के लिए सियासत के मैदान में बीजेपी पहले राम मंदिर का उद्घाटन कई हिंदू आचार्यों के द्वारा अधूरा होने के कारण विरोध करने पर भी कर दिया गया तो वहीं अब पार्टी ने सियासत के मैदान में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान का "पांसा" फेंका है। यह सब ठीक लोकसभा चुनाव के दो-तीन महीने पहले किया जा रहा है जो कि चुनाव के बाद भी किया जा सकता था।

जहां एक साल में सिर्फ तीन भारत रत्न देने का नियम है तो वहीं प्रधानमंत्री जी ने स्व. कर्पूरी ठाकुर, लाल कृष्ण आडवाणी, स्व. पीवी नरसिम्हा राव, स्व. एमएस स्वामीनाथन और पूर्व प्रधानमंत्री एवं किसान नेता रहे स्व. चौधरी चरण सिंह यानी पांच हस्तियों को देने की घोषणा की है।

अर्थात कह सकते हैं कि भारत में नियम तोड़ने के लिए ही बनाए जाते हैं। मुझे इन महान पुरुषों को भारत रत्न दिए जाने पर गर्व है लेकिन नियम के विरुद्ध कोई भी कार्य किया जाना कतई उचित नहीं लगता। यदि इन्हीं हस्तियों में से किन्हीं दो लोगों को अगले वर्ष यह सम्मान दिया जाता तो कितनी सहूलियत होती और नियमों का उल्लंघन भी नहीं होता। लेकिन चुनावी अभियान को सफल बनाने के लिए सियासी मुलाजिमों ने नियम और कानून की परवाह किए बगैर सियासत को कायम रखने के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार को अपने चुनाव की मोहरें बना ली हैं । जिसमें से दो व्यक्ति पीवी नरसिम्हा राव और एमएस स्वामीनाथन भारत के महान नायक होने के साथ-साथ दक्षिण भारत के मूल नायक रहे हैं। जिससे साफ तौर पर जाहिर होता है की बड़ी ही चतुराई से सत्ता पक्ष ने भारत रत्न प्रदान किए जाने वाली हस्तियों का चुनाव किया है ताकि दक्षिण भारत भी उनके महकमे में आ जाए।

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