देश में शौकिए पत्रकारों की कमी नहीं है ।जिनका उद्देश्य रातों-रात फिल्मी सितारा हो जाना होता है। आज देश की मीडिया का स्तर एक ऊंची सीढ़ी के निचले पायदानों में आने का एक कारण उनका शौक भी है।
उदाहरण के तौर पर आप उमा खुराना केस देख सकते हैं। जिसका फर्जी स्टिंग चलाने वाले कुछ शौकिए पत्रकार धरे गए थे। ऐसे पत्रकारों के संबंध में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि --- -- --उनके शौक ने तो उनका काम कर दिया, लेकिन एक समाजसेवी पत्रकारिता को जहां में बदनाम कर दिया।
खैर हर पेशे के दो चेहरे होते हैं , सो इसके भी हो गए हैं। अब तो समाज सेवा के नाम पर सिर्फ घटनाएं परोसी जा रही है। जिन्हें आज की दुनिया खबर कहती है। और खबरों के आंडे पूंजीपतियों का जो व्यवसाय चल रहा है उससे आप सभी अवगत हैं। और चले भी क्यों ना देश के राजनेता भी तो राष्ट्र सेवा के नाम पर खबरों में जो बने रहते हैं। कई राज्यों में चुनावी माहौल चल रहा है। उदाहरण के तौर पर आप स्थानीय समाचार चैनलों और अखबारों में उनका प्रचार - प्रसार देख सकते हैं। यह सब कैसी पूंजी के आधार पर चल रहा है आप स्पष्ट समझ सकते हैं। अब चुनाव को नया मोड़ देने में शौकिया पत्रकारों का अहम योगदान होता है, ऐसे शौक का अंत शायद ही होगा।
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