
मझिगवा ( रायबरेली, उ. प्र. ) उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में महराजगंज ब्लाक के मझिगवा ग्रामसभा के ईंट-भट्ठे वाले इस इलाके में ईंट से निकली धूल की पर्त पहले से ही हर चीज के ऊपर जमी रहती थी। लेकिन अब पक्की सड़कें भी धूल से सनी हुई हैं। अगर कोई भी व्यक्ति मेहमान की तरह इस गांव में प्रवेश करना चाहे तो मुश्किल होगा बशर्ते वह बंद वाहन / गाड़ी से न आया हो। मुश्किल इसलिए होगा क्योंकि सड़कों पर जमी 5 से 6 इंच तक धूल की परतें उसे एक मजदूर के रूप में तब्दील कर देंगी। सड़क के बगल में स्थित खेत के किसान ( उम्र 75, भूतपूर्व मेट ) रामसुमिरन सब्जी के साथ-साथ अन्य फसलों की भी खेती करते हैं। ये बताते हैं कि अब तो गर्मी भी शुरू हो गई है और धूल इतनी ज्यादा उड़ती है कि हमारी सब्जियां इससे खराब होने लगती हैं और अब सब्जियां तोड़कर बाजार ले जाने से पहले उनकी सफाई करने में बहुत मसक्कत करनी पड़ती है।
इसके अलावा अन्य धान-गेहूँ की फसलें भी प्रभावित हो जाती हैं। सबसे ज्यादा कठिनाई इन फसलों की कटाई में होती है। क्योंकि जो धूल उन फसलों पर जम जाती है, फसल काटते समय वही धूल किसानों के नाक व मुंह सहित अन्य हिस्सों में प्रवेश करने या जमने लगती है। जिससे किसानों को दमा जैसी अन्य बीमारियां भी हो जाती हैं। इस समय रामसुमिरन भी सांस की बीमारी से जूझ रहे हैं। खेती करने से उतना फायदा नही होता जितना नुकसान हो जाता है, लेकिन पेट की खातिर सब करना पड़ता है। यह सिर्फ यूपी के किसी एक गांव की दशा नहीं है, ऐसे सैकड़ों गांव मिल जाएंगे जहां की दशा इससे भी बदतर है।
सड़क की दुर्दशा
तस्वीर में दिख रही यह कच्ची सड़क महज 8 महीने पहले कच्ची होने के बावजूद भी एक साफ-सुथरी और सामान्य वाहनों के साथ-साथ पैदल चलने में भी सुगम थी। लेकिन अब इसमें लगभग एक फीट तक धूल की परत है। अगर कोई भी व्यक्ति जूता पहनकर इस सड़क से गुजरे तो उसके जूते धूल से सन जाएंगे बगल के गांव छुलिहा ग्राम वासी 'दउवा' बताते हैं कि इस सड़क का यह हाल बरियारपुर ईंट-भट्ठा मालिक की वजह से हो गया है।
दरअसल उसने मझिगवा गांव के बगल में ठेके पर 3 लख रुपए में खेत की मिट्टी खरीदी है और वह इस मिट्टी को ट्राली में भरकर के ट्रैक्टर के द्वारा इसी रास्ते से लगातार 6 महीने से मजदूर और ठेकेदारों की मदद से ढो रहा है। दउवा के साथ मौजूद राम सुमिरन का कहना है कि अगर यह काम ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले बारिश के दिनों में बरसात के कारण सड़क पर जमी धूल, कीचड़ का रूप ले लेगी इसके चलते फिर इस सड़क से वाहन तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि पैदल चलने पर भी मनुष्य के पैर घुटने तक उस कीचड़ में डूब जाएंगे।
सरकारें गांव का विकास तो करती हैं परंतु किस प्रकार का विकास, जिस प्रकार के विकास की जरूरत है गांव को क्या उस प्रकार का विकास? - नहीं। जहां पक्की सड़कों की जरूरत है वहां सरकार हर घर नल लगवा रही है और जहां पर जल का संकट है वहां पर सड़क बना रही है। दरअसल हर गांव को हर घर नल की जरूरत नहीं है ठीक उसी प्रकार इस गांव को भी हर घर नल की जरूरत नहीं थी जो की सरकार की तरफ से ग्राम प्रधान द्वारा लगवाए जा रहे हैं क्योंकि इस गांव में जल का स्तर भी बेहतरीन है और नलों की समुचित व्यवस्था भी है। इसलिए इस गांव के लोगों को एक पक्की और सुव्यवस्थित सड़क की जरूरत है जिसे ग्राम प्रधान द्वारा भी अनदेखा किया जा रहा है। दउवा बताते हैं कि ग्राम प्रधान अब गांव के बाहर से बनी एक सड़क का प्रयोग आने-जाने के लिए करते हैं वह अब इस रास्ते से आवागमन बंद कर चुके हैं अगर वे इस सड़क का नवनिर्माण करवा दे तो उन्हें भी सफर की दूरी तय करने में समय कम लगेगा और सुगमता भी होगी। लेकिन आने वाले बारिश के महीने आषाढ़ ( जून - जुलाई ) से पहले अब इसकी मरम्मत शायद ही वह करवाएंगे। क्योंकि आषाढ़ के लगने से पहले तक यानी भारी बारिश जब तक शुरू नहीं होगी तब तक ईंट - भट्ठे के काम चलते रहेंगे और इस रास्ते की हालत और भी बदतर होती जाएगी। क्योंकि तब तक भट्ठा मालिक इस रास्ते से ही मिट्टी मंगवाता रहेगा। इस रास्ते से नजदीक भी पड़ता है और संसाधन की कम खपत होती है जिससे भट्ठा मलिक को सीधे - सीधे फायदा होता है।
मौजूदा सरकार का कहना है कि उसके कार्यकाल मे पिछली सरकार से 3 गुना ज्यादा सड़कें बन रही हैं लेकिन अभी तक इस गांव में इस पंचवर्षीय किसी भी सड़क परियोजना का कोई नामो - निशान नहीं है और यहां का प्रधान भी किसी सड़क परियोजना को लाने के लिए शायद ही उगाही करेगा। क्योंकि इस सड़क के दुरुस्त होने से न होने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता और ना ही किसी कार्पोरेट भट्ठा मालिक को कोई फर्क पड़ेगा। क्योंकि वह हर वर्ष मिट्टी को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करने के लिए अपने स्थान बदलते रहता है। जहां उसे उचित दर में खेत की मिट्टी मिल जाती है वह वहीं से मिट्टी लाना चालू कर देता है। इस प्रकार भट्ठा मालिकों की बढ़ती मनमानी हर वर्ष कहीं ना कहीं की सड़क को अव्यवस्थित जरूर कर देती है। क्योंकि हर वर्ष पक्के मकान की संख्या में वृद्धि होती है और हर वर्ष हजारों लाखों ईंट का सिर्फ एक ही भट्ठे से आयात लोगों द्वारा किया जाता है। इसलिए अनवरत चलने वाले इस काम में मिट्टी का प्रयोग तो होता ही रहेगा परंतु सड़कों को कोई नुकसान ना हो इसके लिए ग्रामीणों की ओर से ग्राम प्रधान को भट्ठा मालिकों से एक समझौता कर लेना चाहिए जिससे सड़के दुरुस्त बनी रहें।
फिलहाल उपरोक्त सड़क की नाजुक हालत होने के कारण सिर्फ और सिर्फ वहां के किसानों और आम जनता को नुकसान होने वाला है बाकी उसकी हालत से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता दउवा का कहना है कि इस बार बारिश के मौसम वाली फसल की खेती करने में भी किसानों को काफी संघर्ष करना पड़ेगा और बारिश के मौसम में धान की फसल का रोपण करने के लिए खेत को जोतने के लिए ट्रैक्टर ड्राइवर को भी भारी संघर्ष करना पड़ेगा। क्योंकि ज्यादा गहरी खाई और कीचड़ में ट्रैक्टर भी पस्त हो जाते हैं। आखिर में वे एक मशीन ही तो हैं जो किसी एक सीमा तक ही जोर लगा सकते हैं। फिलहाल अभी तो सब्जियों की खेती में ही सड़क की दुर्दशा के कारण काफी जिहालत करनी पड़ रही है तो बारिश के समय में अनाज को ढोने में भी काफी जिहालत करनी पड़ेगी।
पांच गांव वाले इस ग्राम सभा में कई सड़कें पहले से ही पक्की हैं लेकिन इस सड़क की दुर्दशा पर हम चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह इस ग्राम सभा की एक ऐसी सड़क है जो की एक नगर पंचायत / टाउन एरिया को जोड़ती है। जहां पर विश्वविद्यालय हैं। जिस कारण इस सड़क का महत्व काफी बढ़ जाता है और कॉलेज के अलावा कई अन्य जरूरी चीजें भी वहां पर मौजूद हैं। जिस कारण इस मार्ग से आवागमन काफी ज्यादा होता है। परंतु इस मार्ग की दुर्दशा के कारण कॉलेज जाने वाले छात्र भी उड़ती हुई धूल के शिकार हो जाते हैं। वह सुव्यवस्थित होकर घर से तो निकलते हैं लेकिन कॉलेज साफ सुथरा नहीं पहुंचते हैं। इस रिपोर्ट में और भी बहुत सी चीज शामिल हो सकती हैं। लेकिन मेरा इस रिपोर्ट के माध्यम से यह संदेश देना है कि गांवों के ऐसे नाजुक हालात होने के कारण ही वहां पर साक्षरता दर कम होती है। किसानों की आय भी प्रभावित होती है और गांव में समुचित व्यवस्था न होने के कारण ही लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं। जिससे शहरों में भीड़ बढ़ती जा रही है और हर दिन दुर्घटनाओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है। वहीं अगर गांव में पक्की सड़कें, विद्यालयों में उच्च स्तर की शिक्षा, अस्पतालों की समुचित व्यवस्था और अस्पतालों में समुचित व्यवस्था हो जाए तो गांव में भी रोजगार पैदा किए जा सकते हैं और लोगों के पलायन को भी रोका जा सकता है। लेकिन गांव में अनुचित विकास व्यवस्था तब तक चलती रहेगी जब तक सरकारें सड़क की जगह जल परियोजनाएं और जल की जगह सड़क परियोजना लाती रहेगी। जब तक सरकार पहले रिसर्च द्वारा यह पता ना लगा ले की किस गांव को किस परियोजना की जरूरत है तब तक सरकार द्वारा लाई गई सभी परियोजनाएं आम जनमानस को संतोषजनक परिणाम देने में सक्षम नहीं हो सकती है।

Write a comment ...