महराजगंज ( रायबरेली, यूपी ): जब प्रत्येक महीने के अंतिम दिनों में बहुत से लोगों और परिवारों में छुट्टियों से लेकर पिकनिक तक की तैयारी और तरह-तरह की हलचलें शुरू होने लगती हैं तो वहीं कस्बे के कुछ परिवारों में माह के अंतिम दिनों में मुश्किल से चूल्हे आग जाती है। जब किसी के घर में चूल्हे में मुश्किल से आग पहुंचती है तो उसके घर में मौजूद बच्चों के पेट में लगी आग की लपटों को देख और सुन पाना शायद ही किसी के लिए सहज हो। कहानी नहीं ये हकीकत है कस्बे के उन परिवारों की जिनके पास राशन कार्ड तो हैं, वह गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत आते भी हैं, उन्हें राशन भी मिलता है। लेकिन समस्या यह है कि राशन पूरा नहीं मिलता है राशन पूरा क्यों नहीं मिलता है, क्या सरकार ऊपर से राशन कम भेजती है? - बिल्कुल नहीं! सरकार राशन पूरा भेजती है।
कस्बे में सर्वे करने पर लगभग 40 लोगों से पूछने के बाद किसी ने भी यह नहीं कहा कि राशन पूरा मिलता है सभी ने यही कहा कि हर खाताधारक का एक यूनिट राशन काट लिया जाता है और सरकार हर यूनिट पर 5 किलो राशन देती है यानी कि जिस खाताधारक के पांच सदस्य अर्थात पांच यूनिट है उसे चार यूनिट का राशन ही मिलता है यानी 20 किलो राशन ही मिलता है इसी प्रकार जिसका चार यूनिट है उसे तीन यूनिट और जिसका तीन यूनिट है उसे दो यूनिट ही राशन मिलता है। अब सवाल यह उठता है कि कस्बे के लोग उस राशन वितरक का विरोध क्यों नहीं करते हैं, इसकी शिकायत क्यों नहीं करते हैं? अब मसला यह है की शिकायत कौन करे- वह जो अत्यंत गरीब हैं जिनका पूरा राशन न मिलने के कारण महीना पूरा होने से पहले ही मिला हुआ पूरा राशन खत्म हो जाता है, जिनके यहां महीने के अंतिम दिनों में खाने के लाले पड़ जाते हैं। खाने के लाले इसलिए पड़ जाते हैं क्योंकि ये भूमिहीन भी हैं और अत्यंत गरीबी भी। उपरोक्त श्रेणी से ऊपर वाले लोग शिकायत इसलिए नहीं करते क्योंकि उनमें से कुछ के पास खेती योग्य भूमि है और जिनके पास भूमि नहीं है वह बाजार से राशन खरीद कर खाने में सक्षम है इसलिए इस तबके को कोई परवाह नहीं चाहे राशन कम मिले या पूरा।
अब बात रही की सरकार ने सारा सिस्टम ऑनलाइन कर रखा है तो फिर यह शख्स ऊपर पकड़ा क्यों नहीं जाता? गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत खुद का कायाकल्प और कल्याण करने में सफल यह व्यक्ति पकड़ा इसलिए नहीं जाता क्योंकि जब यह कस्बे का राशन वितरक किसी खाता धारक का अंगूठा लगवा लेता है तो उसके बाद जितने यूनिट उस खाताधारक के हैं उतने यूनिट रजिस्टर पर चढ़ा देता है लेकिन जब राशन देता है तो एक यूनिट काट कर देता है यानी कि जिसका चार यूनिट है उसका रजिस्टर पर चार यूनिट चढ़ाता है लेकिन राशन तीन यूनिट ही देता है। इस प्रकार कस्बे का राशन वितरक धांधली करने में सफल हो जाता है। यह समस्या सिर्फ इसी कस्बे की है।
जबकि कस्बे के आसपास 10 से 15 किलोमीटर की एरिया के ग्रामीण इलाकों में जैसे कि नारायणपुर, जमुरावा जैसे क्षेत्रों में लोगों से पूछने पर पता चला कि यहां के राशन वितरक सभी खाताधारकों को उनके कार्ड पर सदस्यों की संख्या की आधार पर सभी यूनिटों पर बराबर राशन प्रदान करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र के राशन वितरकों का कहना है कि जब सरकार उन्हें सैलरी देती है तो वह इस तरह के भ्रष्टाचार क्यों करें। अपनी तिजोरी भर के गरीबों के पेट खाली रखना बहुत बड़ा अपराध है। महाराजगंज कस्बे में तीन राशन वितरक हैं। जिनमें से एक राशन वितरक ऐसा है जो कुछ लोगों को तो खाता धारकों की संख्या की जितनी यूनिट है उतनी यूनिटों पर बराबर राशन देता है लेकिन कुछ लोगों को एक यूनिट काट कर देता है अर्थात यह राशन वितरक लगभग 50% धांधली करता है। कस्बे का दूसरा राशन वितरक चाहे जो भी हो सभी खाताधारकों को हर यूनिट पर बराबर राशन देता है। किसी भी खाता धारक के सदस्यों की संख्या में बिल्कुल कटौती नहीं करता है। जबकि बाकी बचा एक राशन वितरक जिसकी चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं जो लगभग सभी खाताधारकों को एक यूनिट काट कर ही राशन देता है। इस धांधलीकर्ता राशन वितरक के यहां 400 से अधिक खाता धारक राशन लेने आते हैं। अगर हम 400 खाता धारकों के हिसाब से सभी के एक यूनिट का राशन काटे जाने पर आंकलन करें तो कुल 20 कुंतल राशन का सीधे-सीधे राशन वितरक को फायदा होता है। जिसकी कीमत ₹2 हजार प्रति कुंतल के हिसाब से ₹40 हजार होती है अर्थात ₹40 हजार प्रति माह के हिसाब से राशन वितरक सालाना 4 लाख 80 हजार रुपए का सीधे फायदा उठाता है। जबकि राशन वितरक को सरकार की तरफ से मेहनताना सैलरी भी मिलती है। उसके बावजूद भी यह राशन वितरक इतने खुले पैमाने पर धांधली करने को आतुर है और तो और इस 4 लाख 80 हजार रूपए पर सरकार का कोई टैक्स भी नहीं लगता है। इस राशन वितरक की धांधली की वजह से ही कस्बे में मौजूद वे गरीब परिवार जो भूमिहीन हैं और बाजार से राशन खरीद कर खाने में सक्षम भी नहीं है इन परिवारों से पूछताछ करने पर पता चला कि उनके घर में महीना पूरा होने से पहले ही राशन खत्म हो जाता है। आखिर 20 किलो राशन पांच लोगों के परिवार में एक महीने कैसे चल सकता है। अगर यह परिवार रोजाना 1 किलो राशन की खपत करें तो भी महीने के 10 दिन इन्हें भूखे रहना पड़ेगा।
भारत देश में जाति का सिस्टम है अगर हम इस कस्बे को जाति के नजरिए से दर्शाएं तो जितने खाता धारक हैं, मुस्लिम आबादी को छोड़कर जो पिछड़ी जाति से आते हैं उनमें से लगभग हर किसी के पास खेती योग्य भूमि है। किसी के पास एक एकड़ से कम है तो किसी के पास एक एकड़ से अधिक है इसलिए इन लोगों को एक यूनिट राशन काट कर मिलने से कोई समस्या नहीं होती है। और जो उच्च वर्ग के लोग हैं उनमें से बहुत से लोग भूमिहीन हैं। लेकिन उन लोगों के पास आय के बेहतर स्रोत होने के कारण यह लोग बाजार से राशन खरीद कर खाने में पूर्णतयः सक्षम हैं। लेकिन रिपोर्ट में जिन गरीब लोगों की बात की गई है वे अनुसूचित जाति से आते हैं अनुसूचित जाति से आने वाले लोगों में भी कुछ लोगों के पास खेती योग्य जमीने हैं। इसलिए उन्हें भी राशन संबंधी मामले में एक यूनिट राशन काट कर दिया जाता है तो कोई आपत्ति नहीं होती है। लेकिन इसी अनुसूचित जाति में कुछ ऐसे परिवार हैं जिनके बारे में हमने चर्चा की है जो भूमिहीन है और उनके आय के स्रोत भी
कुछ खास नहीं है जिस कारण से इनको एक यूनिट राशन काटकर दिए जाने पर महीने के अंतिम दिनों में इन परिवारों को खाने के लाले पड़ जाते हैं। अब यह गरीब लोग इतने जानकार और जागरूक भी नहीं है और साथ ही साक्षर भी नहीं है जिस कारण यह लोग राशन वितरक का विरोध करने में और उनकी शिकायत करने में असमर्थ है।
लेकिन जिन तबकों के लोग विरोध कर सकते हैं और राशन वितरक की शिकायत भी कर सकते हैं वे लोग इसलिए राशन वितरक की शिकायत नहीं करते क्योंकि उन्हें डर है कहीं इसका विरोध और शिकायत करने के चक्कर में उन लोगों के राशन कार्ड निरस्त न कर दिए जाएं क्योंकि इन तबको में से सभी लोग राशन कार्ड की श्रेणी और पैमाने के हिसाब से पात्र नहीं है। इसलिए इन वर्गों का यह मानना है कि हमें क्या दिक्कत कुछ तो मुफ्त का मिल ही रहा है। अर्थात रिपोर्ट में दर्शाए गए सभी पहलुओं का निष्कर्ष निकाला जाए तो यह स्पष्ट होता है कि चाहे वह इतिहास हो या वर्तमान जब तक खुद पर आपत्ति नहीं आई है तब तक विरोध कर सकने वाले तबके के लोगों ने भी किसी भी असामान्य और सिस्टम और जनहित के खिलाफ चल रही किसी भी धांधली और योजना का विरोध नहीं किया है। जिस कारण से ही वंचितों के अधिकार कभी उन्हें नहीं मिल सके हैं और उनके हक की रोटी भी उन्हें नहीं मिल सकी है। जब सरकार की कोई एक-आधी योजनाएं थोड़ा सा सही होती हैं। और गरीबों के लिए भी राहत योग्य होती हैं तब बिचौलिए अपने हित के लिए पोषण आपूर्ति की जगह सिर्फ खाना पूर्ति करने लगते हैं।
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